Saturday, September 10, 2011

Ae mere dil, kaisa hai tu!

ऐ मेरे दिल, कैसा है तू
तू खुश क्यूँ नहीं होता
जब सरहद पार से कोई मसीहा
हाथ मिलाने आता है
क्यूँ उसकी आँखो में
अच्छाई नज़र नहीं आती
क्यूँ उसकी बातोँ में
सचाई नज़र नहीं आती

ऐ मेरे दिल, कैसा है तू
तू यकीन क्यूँ नहीं करता
जब वो अंग्रेजी में सोचने वाला भी
विश्वास तुझे दिलाता है
क्यूँ खेद प्रकट करने वालो कि
प्रतिबद्धता कभी क्रियाशील नहीं लगती
क्यूँ अमर ज्योति पर जाने वालो से
कोई आग भुजाने की उम्मीद नहीं जगती

ऐ मेरे दिल, कैसा है तू
तू स्वयं को असहाय क्यूँ है समझता
जब गिन गिन के सफ़ेद-पोश
बहते रक्त का क़र्ज़ चुकाते है
क्यूँ इन लाखोँ देने वालोँ को
एक रत्ती इज्ज़त नहीं मिलती
क्यूँ इन परस्पर रोने वालो को
किसी विधवा की दुआ नहीं लगती

ऐ मेरे दिल, कैसा है तू
तू क्यूँ बेचैन सा रहता है
जब रेडियो पर सुनता है - दिल्ली पुलिस
आपके लिए, आपके साथ, सदेव !
क्यूँ सुनी सुनाई ये बातें सब
समक्ष दिखने से कतराती हैं
क्यूँ घर से बहार निकले अपनो
कि जान कि फ़िक्र तुझे यूँ खाती है

ऐ मेरे दिल, कैसा है तू
अब तो थोडा होसला रख ,
थोडा तो कभी आशावादी बन
आशावादी बन !!!

5 comments:

  1. v. nice rohan. i like the way you weave in the complexity of real life situations that rests on hopelessness often and the hope that everyone asks you to hold tight. I also love the fact you take this as a challenge to heart while mind often surrenders!

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  2. good one... its been really long since you have written

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  3. haha hahah haha haha ........... lolzzz.......

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  4. @homeboy - Thanks :)
    @Shalini - thanks a lot :) . I do not challenge my heart too often but I guess there's no other way then to hope for something better.
    @Manish - I'll try to.. thanks :)
    @Abhishek - thanks :)
    @Anonymous - lolzz :D

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