Saturday, June 5, 2010

Sapno ka Bharat

मनोज एक गरीब मजदूर का बेटा है ,
वह पढना चाहता था पर आसपास सब कमाते थे,
पढाई तो खर्चा है, रोटी तो मेहनत से आती है
गरीब का बेटा गरीब, मजदूर का बेटा मजदूर ,
पारिवारिक व्यवसाय की परंपरा यूं चलती ही जाती है |

उसका सपना अब बस नियमित मजदूरी है
दूसरों का घर बनाना ही उसकी मजबूरी है
कोई उसका नसीब हाथ देखकर नहीं बताता
वो सांवलापन, मायूस चेहरा, कालिक-पुते कपड़े
लाचारी की एक अनंत कहानी है |

मैं एक ऐसे भारत को ढूँढता हूँ ,
जहाँ कोई फकीर उस मनोज को भी रोके,
एक पांच रुपये का सिक्का मांगे और
उसकी हस्त-रेखाओं को निहारकर बोले -
"क्या किस्मत पायी है सेठ जी !"

लक्ष्मी, मीरा की एक लोती बेटी है,
उसके जन्म पर कोई मिठाई नहीं बँटी,
दस साल बीत गए, कोई जनम-दिवस न मनाया गया |
बाप तो भगवान है क्यूंकि लक्ष्मी अभी तक जिंदा है
जो जीवनदान देता है, वही तो सबसे नेक बन्दा है

कल लक्ष्मी की शादी है, वो पहली बार सजेगी
जाकर किसी कमरे की शोभा वो बनेगी
वो किसी को पुत्र दे, वो मन्नते यही करती है,
पुत्री तो एक श्राप है, वो जीते जी मरती है |

मैं एक ऐसे भारत को ढूँढता हूँ
जहाँ लक्ष्मी का शारीर, नींद की गोली से बड़कर हो,
वो जीतने को तेयार, उन आदमियों से लड़कर हो,
क़ाबलियत ही माध्यम हो, इस ऊँच-नीच के खेल का,
जहाँ एक गीत गूंजे - सपनो और आशाओं के मेल का |

मैं कटे हुए उन सुन्हेरे पंखों को ढूँढता हूँ |
मनोज के खोये बचपन को ढूँढता हूँ |
लक्ष्मी के उस चंचल मन को ढूँढता हूँ |
मैं सबके सपनो के भारत को ढूँढता हूँ |

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