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Saturday, September 10, 2011

Ae mere dil, kaisa hai tu!

ऐ मेरे दिल, कैसा है तू
तू खुश क्यूँ नहीं होता
जब सरहद पार से कोई मसीहा
हाथ मिलाने आता है
क्यूँ उसकी आँखो में
अच्छाई नज़र नहीं आती
क्यूँ उसकी बातोँ में
सचाई नज़र नहीं आती

ऐ मेरे दिल, कैसा है तू
तू यकीन क्यूँ नहीं करता
जब वो अंग्रेजी में सोचने वाला भी
विश्वास तुझे दिलाता है
क्यूँ खेद प्रकट करने वालो कि
प्रतिबद्धता कभी क्रियाशील नहीं लगती
क्यूँ अमर ज्योति पर जाने वालो से
कोई आग भुजाने की उम्मीद नहीं जगती

ऐ मेरे दिल, कैसा है तू
तू स्वयं को असहाय क्यूँ है समझता
जब गिन गिन के सफ़ेद-पोश
बहते रक्त का क़र्ज़ चुकाते है
क्यूँ इन लाखोँ देने वालोँ को
एक रत्ती इज्ज़त नहीं मिलती
क्यूँ इन परस्पर रोने वालो को
किसी विधवा की दुआ नहीं लगती

ऐ मेरे दिल, कैसा है तू
तू क्यूँ बेचैन सा रहता है
जब रेडियो पर सुनता है - दिल्ली पुलिस
आपके लिए, आपके साथ, सदेव !
क्यूँ सुनी सुनाई ये बातें सब
समक्ष दिखने से कतराती हैं
क्यूँ घर से बहार निकले अपनो
कि जान कि फ़िक्र तुझे यूँ खाती है

ऐ मेरे दिल, कैसा है तू
अब तो थोडा होसला रख ,
थोडा तो कभी आशावादी बन
आशावादी बन !!!

Tuesday, May 25, 2010

Sarhad Ki Jung

जब सरहद पे छिड़ती है जंग
हमे हाथों से लड़ना पड़ता है
फासले तो अब ये मिटते नहीं
हमे ही मिटना पड़ता है

शहीद होने से दो क्षण पहले,
लाचार ही तड़पना पड़ता है
उन खुली आँखों के खोंफ को
तिरंगे से ढकना पड़ता है

निकलते नहीं बातों से नतीजे,
ये खून यूं रोज़ निकलता है
मुआवजों के धिन्धोरे रुकते नहीं,
साँसों को रुकना पड़ता है ,

फिरंगियों के इस चक्रव्यूह में
हमे अभिमन्यु बनना पड़ता है
तुम गिनती करके थकते नहीं,
हमे थक के मरना पड़ता है

जान देने या जान लेने के अलावा
कोई रस्ता नहीं निकलता है
इंसानियत की परछाई देखी अगर
तो गद्दार का दर्ज़ा मिलता है

कभी किसी पत्नी, कभी किसी बहन
यूं हर निर्दोष को रोना पड़ता है
भारत माता के नाम पर
खुद का नाम लुटाना पड़ता है

जब सरहद पे छिड़ती है जंग
हमे हाथों से लड़ना पड़ता है
फासले तो अब ये मिटते नहीं
हमे ही मिटना पड़ता है